गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जब घूमना हो कुछ खास तो ललितपुर जाइये



इस बार एतिहासिक धरोहरों को देखने की इच्छा हुई ऐसी जगहों की जानकारी ढुंढते हुए मैंने ललितपुर जाने का निर्णय किया। इस के बाद कोशिश शुरु हुई की इस यात्रा में साथ जाने को किसी मित्र को तैयार करना। ललितपुर से जुडे कुछ फोटोग्राफ और जानकारियां दोस्तों को दिखाने के बाद कपिल जी को इस यात्रा पर चलने के लिये राजी करने में सफलता मिली

सप्ताहांत यात्रा के हिसाब से शुक्रवार रात दिल्ली से निकल कर शनिवार सुबह ललितपुर पहुंचना था और रविवार रात को ललितपुर से निकल कर सोमवार सुबह दिल्ली पहुंचना था


बस शुक्रवार रात को दिल्ली से ललितपुर का सफर करने के लिये रेल रिजर्वेशन का प्रयास शुरू किया अमृतसर-लोकमान्य तिलक एक्स्प्रेस में टिकिट बुक कराया गया ये ट्रेन थोडी थकाऊ है दक्षिण एक्सप्रेस
बेहतर विकल्प थी और इस प्रकार शनिवार को सुबह बजे ललितपुर स्टेशन पर पहुंच गये
। ये अच्छा हुआ कि वापसी का रिजर्वेश दक्षिण एक्सप्रेस में मिल गया था। ललितपुर स्टेशन उतरने के बाद होटल ढूंढने का प्रयास किया और स्टेशन के पास ही एक कामचलाऊ टाइप के होटल में ठहर गयेनहा धो कर होटल से बाहर निकले पास की ही एक दुकान से जलेबी और समोसे का नाश्ता किया, और चाय पी फिर निकल पडे औटो वालों से मोलभाव करने, एक भाईसाहब ५०० रुपये में तैयार हुए और हम निकल पडे देवगढ की ओर रास्ते में जंगल के बीच में से लहराती हुई सडक ने मन मोह लिया, बेतवा नदी के तट पर स्थित देवगढ में घूमने के लिये कई सारी जगह हैं, जिन में दशावतार मन्दिर, जैन मन्दिर समूह, राजघाटी नाहरघाटी, सिद्ध गुफा, वराह मन्दिर दर्शनीय हैं
वराह मन्दिर ५वीं या ६वीं सदी का बना हुआ मन्दिर है जिस में मुख्य मूर्ती भगवान विष्णू के वराह अवतार की है जो अब खंडित हो चुकी है
कुरैंयाबीर का मन्दिर लगभग ११०० वर्ष पुराना शिव मन्दिर है, वहां बताई गई जानकारी के अनुसार ये मन्दिर के ऊपर बना शिखर मन्दिरों के ऊपर शिखर बनाने का प्राचीनतम उदाहरण है

दशावतार मन्दिर यह मन्दिर ५वीं सदी में गुप्तकालीन राजाओं के द्वारा बनबाया गया था, ये मन्दिर भगवान विष्णू को समर्पित है, मन्दिर की दीवारों पर वेष्णव धर्म के अनुसार भगवान विष्णू से जुडी हुई कथायें उकेरी गयी हैं, इस के अतिरिक्त यहां दाम्पत्य प्रेम के द्रश्य भी उकेरे गये हैं
जैन मन्दिर समूह लगभग १०० मीटर ऊंचे वनाच्छादित पर्वत श्रंखला में ३१ जैन मन्दिर हैं, यहां हजारों की संख्या में जैन धर्म से जुडी मूर्तियां हैं

देवगढ के समीप बहती बेतबा नदी

दशावतार मन्दिर

दशावतार मन्दिर

जैन मन्दिर देवगढ

 

 यहां घूमने के बाद मेरा विचार था कि कुछ स्थानों को आप चाह कर भी कभी पूरा नहीं देख सकते हमेशा ही लगेगा कि कुछ छूट गया पर अब शाम के ४ बज चुके थे और ललितपुर लौटना था। इस लिये हो लिए बापस ललितपुर की ओर

ललितपुर पहुंचने के बाद स्टेशन के पास के एक रेस्तरां में पेटपूजा की और उस के बाद ही होटल में पहुंच कर कुछ देर आराम करने पर विचार किया

होटल से शाम को ६:३० बजे कपिल के कहने पर हम दोनों चाय पीने के लिये निकले, चाय पीते हुए शहर के बारे में जानकारी प्राप्त की तो मालूम पडा कि पास में ही बाबा सदनशाह की मजार है
। बाबा सदनशाह शिव जी के भक्त थे उन के बारे में भक्तमाल की कथा में भी जिक्र किया गया है। तो जानकारी ले कर हम भी बाबा सदनशाह जी कि मजार के दर्शन करने गये, बापस लौटते हुए हम दोनों ने रात्री भोजन किया और दुसरे दिन के लिये औटो को बुक किया और होटल पहुंच गये सोने के लिये

सुबह उठते हुए मेरे और कपिल के बीच कौन बाद में उठेगा इस बात की स्पर्धा चल रही थी
। लेकिन औटो बाले भाई का फोन आने पर कि वह ३० मिनट में पहुंच जायेगा मैं हार कर पहले उठा और नहा धो कर तैयार हुआ फिर कपिल भाई ने भी बिस्तर छोडा नहाये धोये। सबसे खास बात ये कि औटो वाले भाई भी सवा घंटे के बाद में आये। चलिये उन्होंने फोन कर के कम से कम हम दोनों को तो उठने के लिये मजबूर कर ही दिया, अब नाश्ता कर के दुधई, चांदपुर और पाली घूमने जाना था
दुधई और चांदपुर में ९वीं से १२वीं सदी के बने हुए मन्दिर व मन्दिरों के अवशेष फैले हुए हैं सबसे पहले पाली में नीलकन्ठेश्वर महादेव के दर्शन किये ये मन्दिर ४०० से अधिक वर्ष पहले बुन्देला राजा ने बनबाया था इस मन्दिर में सदा शिव भगवान की तीनमुखी विशाल प्रतिमा है


दुधई के जंगलों मे पहाड को काट कर बनाई गयी नरसिंह भगवान की प्रतिमा है जिन का मुख शेर का और शरीर मनुष्य का है और वो हिरण्यकश्यप का वध करते हुए दिखाये गये हैं, इस प्रतिमा की ऊंचाई ३५ फुट से अधिक है

दुधई
दुधई


दुधई

नरसिंह भगवान की प्रतिमा


चांदपुर
चांदपुर
चांदपुर

नीलकन्ठेश्वर महादेव

शाम को ५ बजे ललितपुर की ओर निकल दिये। ललितपुर के आसपास फैली पुरातात्विक धरोहरों का थोडा सा ही हिस्सा देख पाये थे। यहां बहुत कुछ है देखने के लिये पर शायद जो सबसे खास था वो सब देख लिया था इस बात की संतुष्टी थी रात में ८ बजे दक्षिण एक्स्प्रेस से दिल्ली की ओर प्रस्थान करना था
ललितपुर जहां एक ओर प्रक्रति के उन्मुक्त व अल्हड सोन्दर्य से धनी है तो दूसरी ओर एतिहासिक एवं पुरातात्विक सम्पदा से अत्यंत सम्रध्द है। इतिहास के गर्भ में छिपे रहस्यों को उजागर करते अत्यंत प्राचीन मन्दिर, प्रस्तर मूर्तियां एवं कलाक्रतियां हैं, ललितपुर के चारों ओर घूमने के लिये बहुत कुछ है देवगढ, राजघाटी, दुधई चांद्पुर, मदनपुर आदि इन सभी जगहों पर इतिहास स्वंय बोलता हुआ प्रतीत होता है

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

चित्तोड्गढ के किले में मन्ना डे के दर्शन



२००३ दिसम्बर के महिने में परिवार के साथ सडक मार्ग से राजस्थान भ्रमण के लिये गये थे यात्रा का मार्ग मध्य प्रदेश के इन्दौर, रतलाम व मन्द्सौर हो कर चित्तोड के रास्ते राजस्थान में प्रवेश करना और लगभग सारा राजस्थान १० दिन में घूम फिर कर जयपुर, मैहंदीपुर बालाजी होते हुए आगरा उत्तर प्रदेश से बाहर निकलना था
खैर आज इस यात्रा की याद आने का कारण ये है कि जिस दिन हम चित्तोड पहुंचे उस दिन ही वहां पर मन्ना डे नाइट का प्रोग्राम था इतने कम समय में वहां जाना संभव नहीं हो सकता था तो बस उस के होर्डिंग देख कर ही खुश हो लिये कि आज हम और मन्ना डे जी एक ही शहर में हैं
जब दूसरे दिन हम लोग चित्तोड्गढ का किला देखने गये तो हमारे साथ ही मन्ना डे जी भी किला देखने आये हुए थे आराम से मन्ना डे जी से मुलाकात हो गयी थी वहां पर

मेरे छोटे भाई जो तब ज्यादा बडे नहीं हुए थे उन्होंने तो मन्ना डे जी से ये भी कह दिया था कि हम लोग उन को उन की टोपी की वजह से ही पह्चान गये थे, वो ये सुन कर मुस्कुरा दिये थे और छोटे भाई साहाब के गाल पर एक थपकी भी दी, आज उन की म्रत्यु की खबर सुन कर उन का वही मुस्कुराता चेहरा याद आ रहा हैइत्तिफाक से एक बहुत ही खूबसूरत याद दे गये

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

घुमक्कडी कहीं भी और कभी भी

आप के पास साईकिल और एक कैमरा है तो आप कभी भी कहीं भी जीवन के आनन्द दायक २ घंटे बिता सकते हैं जब भी आप बोर हो रहे हैं तो ये विचार करके साईकिल पर घर से निकलिये कि आप २-४ अच्छे फोटो ले कर ही बापस आयेंगे वो फोटो कुछ भी हो सकते हैं, बारिश के बाद में हुई हरियाली, पहाड, पगडंडी, बादल, सूर्योदय, सूर्यास्त, नदी, झरने, पशु पक्षी, रेलवे ट्रैक कुछ भी जब आप उन जगहों में खूबसूरती ढूढेंगे जहां से आप रोज गुजरते हैं तो आप का आस-पास की प्रक्रती के लिये आदर बढेगा और स्थानिय जगहों के बारे में आप की जानकारी भी बढेगी आप स्थानिय पुरातन किलों, हवेलियों, मन्दिरों या ऐसा ही कोई और स्थान के बारे में जानकारी को एकत्र कर सकते हैं और उस को कहीं लिपी बध्द भी कर सकते हैं
हरियाली और रास्ता

आज कल एक नया प्रचलन चल गया है कि यदि कोई व्यक्ती किसी पर्यटन स्थल पर हो कर आया है तो दुसरा भी वहीं जाना चाहता है जब की पहले घूमने का मतलब होता था नये स्थानों की खोज करना, या स्थानों के बारे में जानकारी जुटाना या अन्वेषण करना, जो लोग खुद को पर्यटक कहते हैं उन के लिये कई बार "घर की मुर्गी दाल बराबर" का मुहावरा सही बैठता है
कहीं दूर घूमने जाने में कोई बुराई नहीं, पर पहले या साथ में समीप के स्थलों को भी बराबर महत्व देना चाहिये
ऊंचाई पर स्थित देव स्थान