मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

मथुरा व्रंदावन सभी जगह पर राधे क्रष्ण

दिल्ली से मथुरा के लिये निकले दक्षिण एक्स्प्रेस से विचार था कि शनिवार रात में पहुंच कर रविवार को पूरे दिन जितना हो सकेगा मथुरा व्रंदावन घूमा जायेगाइस सफर में २ लोग साथ में थे कपिल और नीरज ट्रेन से लगभग २ घंटे में मथुरा पहुंच गये समय लगभग रात के १ बज रहे थे
स्टेशन से थोडा बाहर निकल कर होटल खोजा गया एक सस्ता और टिकाऊ कमरा लिया और सो गये दूसरे दिन सुबह सात बजे नहा धो कर निकले मन्दिरों के दर्शन के लिये आस पास कई सारी मिठाई कि दुकानों पर जलेबी और कचोडी बन रही थीं तो एक दुकान पर जहां थोडी ज्यादा भीड थी वहां पर जलेबी कचोडी के नाश्ते के साथ चाय का आनन्द लियाखानपान के लिये सही जगह का चुनाव उस दुकान पर होने वाली भीड से किया जा सकता है, जहां ज्यादा भीड होती है आम तौर पर वहां अच्छी चीज मिलती हैचाय नाश्ते के बाद द्वारिकाधीश जी के दर्शन करने के लिये गये, क्युं कि इस मन्दिर में दर्शन बहुत ही कम देर के लिये होते हैं इस लिये प्रयास था कि सब से पहले यहीं पर दर्शन किये जायें

द्वारिकाधीश मन्दिर में दर्शन करने के बाद यमुना जी के दर्शन किये और जन्मभूमि के दर्शन के लिये गये जन्मभूमि में दर्शन करने के लिये कई सारे चक्र की सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना पडता है बाहर आसपास कई सारी दुकानें हैं पूजा के सामान कि, खानपान की, कपडों की वहां पर एक दुकान से हम तीनों ने हरे क्रष्णा लिखा हुआ कुर्ता लिया और दुकान पर ही टीशर्ट उतार कर वो कुर्ता धारण किया और निकल लिये गोविन्द जी कि नगरी में गोविन्द मय हो कर जन्मभूमि से थोडी सी हि दूरी से टेम्पो मिलते हैं व्रंदावन जाने के लिये हम भी टेम्पो से बांके बिहारी मन्दिर के दर्शन करने के लिये बढ चले व्रंदावन कि ओर मन्दिर से करीब १ कि.मी. पहले टेम्पो वाले ने उतारा आगे का सफर पैदल या रिक्से से किया जाना था, हम पैदल ही चल दिये, पतली सी सडक, सडक के दोनों ओर दुकानें और मन्दिर के जितने पास जाते जा रहे थे लोगों की भीड बढ्ती ही जा रही थी, बांकेबिहारी जी का मन्दिर बहुत ही पतली गली में है, और शायद इस मन्दिर में ही सब से ज्यादा दर्शनार्थी आते हैं वंहा पर मथुरा के प्रसिध्द पेडे का प्रसाद लिया और भीड में काफी धक्कामुक्की के बाद बांकेबिहारी जी के दर्शन करने के लिये बिहारी जी के सामने पहुंचे, यहां प्रसाद स्वयं के द्वारा बांके बिहारी जी को मानसिक भोग लगाया जाता है, हम ने भी प्रसाद का डिब्बा खोल कर भगवान को दिखाया और कहा आप के लिये ही लाये हैं आप भोग लगाइये
दर्शन के बाद फिर एक बार मन्दिर से बाहर निकलने के लिये भीड को चीरते हुए निकलना पडा बांकेबिहारी जी के मन्दिर की गली से बाहर सडक पर आने पर कई सारी चाट की दुकानें है, हम सभी ने आलू टिक्की और गोलगप्पे खाये कुछ देर वहीं घूमने पर देखा एक दुकान पर कुल्हड में लस्सी मिल रही है तो फिर कुल्हड की लस्सी का आनन्द लिया
अब रंगनाथ जी के दर्शन करने के लिये जाना था पैदल, वहां जाने के लिये कपिल के हमारा मार्ग दर्शन किया कई सारी पतली पतली गलियों से निकलने पर भजन याद आ गया 'व्रंदावन की कुन्द गलिन में श्री राधे राधे' आप ने भी जरुर सुना होगा कई सारी गलियों से गुजरने के बाद अंततः रंग जी के मन्दिर पहुंच गये, और हमें भी कपिल के मथुरा व्रंदावन क्षेत्र के बारे में जानकारी पर हमें विश्वास हो गया श्री रंग जी के दर्शन करे ये बडा ही भव्य और पुराना मन्दिर है, मन्दिर के सामने स्तंभ लगा हुआ है जैसा अधिकांश दक्षिण के मन्दिरों में होता है मन्दिर में जाने का द्वार भी काफी भव्य है
अब शाम के पांच बज चुके थे तो हम ने विचार किया कि एक बार फिर से जन्मभूमि के दर्शन करेंगे, वहां की बजार देखेंगे कुछ खरिद्दारी करेंगे और कोई ट्रेन मिल गयी तो रात में ही दिल्ली के लिये निकल लेंगे लगभग आधे घंटे में व्रंदावन से जन्मभूमि पहूंचे एक बार फिर से फुरसत से दर्शन किये बाहर से जान पहचान वालों को उपहार देने के लिये कुछ छोटी मोटी चीजें खरीदीं, ७ बज चुका था थोडी बहुत भूख भी लग आयी थी पास में एक रेस्त्रां में काफी पी और डोसा खाया इन्टरनेट पर जानकारी ली कि ताज एक्स्प्रेस लगभग डेढ घंटे की देरी से चल रही है मतलब आसानी से मिल सकती थी, हम ने होटल पहूंच कर सामान पैक कैया और समय पर स्टेशन पहूंचे आराम से टिकट ले कर ट्रेन में चढ गये, ताज पकड कर हम लोग काफी खुश थे क्युं कि १२ बजे तक घर पहुंच कर चैन की नींद ले पायेंगे



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